केन्द्र सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 'अत्याचारों से तंग आकर भारत आए हिन्दू शरणार्थियों का नागरिकता देने पर काम कर रही है। इसके लिए नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार वैसे तो आने वाले अध्यादेश में इन देशों के नागरिकों को कवर किया जाएगा लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान बांग्लादेश से बड़ी संख्या में सीमा पार कर असम और पश्चिम बंगाल में आए लोगों पर होगा।
योजना पर काम कर रहे एक वरिष्ठ के अनुसार सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या जटिल और विवादास्पद समस्या यही है कि किसे नागरिक माना जाए और उसका आधार क्या हो? इसके साथ ही गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक टास्क फोर्स हिन्दू, सिखों, इसाइयों, बौद्धों और चकमा शरणार्थियों को भी नागरिकता देने की दिशा में काम कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार संसद के शीतकालीन सत्र में इस दिशा में एक विधेयक लाया जा सकता है। सरकार की मंशा असम में सालों से बिना कागजात के रह रहे बांग्लादेशियों को यह संदेश देना है कि सरकार उनको 'सिस्टम' में लाना चाहती है।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि सरकार यह कवायद इसलिए कर रही है ताकि असम और बांग्लादेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उसे लाभ मिल सके। चुनाव अप्रेल-मई में संभावित हैं।
जानकारी के अनुसार 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और ऑल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन के बीच हुए समझौते में शरणार्थियों को यह सिद्ध करना होता है कि वे मार्च 1971 के पहले सीमा पार कर यहां आए थे। लाए जाने वाले अध्यादेश में 2004 के पहले सीमा पार कर आए लोगों को शामिल करने की योजना बनाई जा रही है।
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