जिंदगी जीने की जद्दोजहद है 'मसान'

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फिल्म 'मसान'
रेटिंगः 4 स्टार
डायरेक्टरः नीरज घेवन
कलाकारः रिचा चड्ढा, विकी कौशल, संजय मिश्र, श्वेता त्रिपाठी और विनीत कुमार
मौत और उसके बाद के अवसाद भरे माहौल के बीच आकार लेती जिंदगियां. छोटे शहरों के जीवन के अलग-अलग दंश. धीमी और जकड़ी जिंदगी से बाहर निकलने की जद्दोजहद. आजाद ख्याल जीवन जीने की चाहत पर समाज का विकृत साया. जातिवाद के जाल में उलझा प्यार. ऐसे विषय जिनसे हम नजर नहीं चुरा सकते लेकिन अपनी भाग-दौड़ की जिंदगी में अकसर नजर अंदाज कर जाते हैं, सभी 'मसान' में नजर आते हैं. 'मसान' यानी श्मशान घाट, जहां इनसान का अंतिम संस्कार होता है और फिल्म में भी सभी कैरेक्टर्स के अपने-अपने मसान हैं जो किसी न किसी रूप में अपने इस मसान में रूढि़यों और परंपराओं का अंतिम संस्कार करने की कोशिश में हैं.
डायरेक्टर नीरज घेवन ने फिल्म को इस तरह डायरेक्ट किया है कि फिल्म किसी किताब जैसी लगती है. जो मंथर गति से बहती नदी के समान है जिसे बहते देखना आंखों को भाता है. बनारस की इसकी पृष्ठभूमि है. जिंदगी से जुड़े कैरेक्टर हैं. उनकी जायज लगने वाली समस्याएं हैं और फिल्म कई सवाल जगाती है और सोचने पर मजबूर करती है. डायरेक्टर कहानी को बहुत ही सधे ढंग से आगे बढ़ाते हैं और कुछ भी जबरन करने की कोशिश करते नजर नहीं आते.
कहानी कुछ पात्रों की है. जैसे एक जवान लड़की (रिचा चड्ढा) है जो अपने जीवन को जीना चाहती है और उस खास लम्हे को जीने की तमन्ना रखती है जो हर किसी युवा का ख्वाब होता है. जब वह अपने उस खास लम्हे को सच करने जा रही होती है तभी वह हालात और फिर ब्लैकमेलिंग का शिकार हो जाती है. लेकिन उसे कोई पछतावा नहीं है. दूसरी कहानी डोम युवक (विकी कौशल) की है, जो अपनी पुरानी पहचान को छोड़कर नया और सफल करियर बनाना चाहता है. सवर्ण लड़की से प्यार करता है. कहानी बहुत साधारण है और बिल्कुल वैसी ही है जैसी तड़प आजकल के गांवों और छोटे कस्बों के शहर बनने के लिए नजर आती है. फिल्म इस कॉन्सेप्ट पर काम करती है कि जितनी छोटी जगह, उतनी छोटी सोच.
एक्टिंग के मामले में संजय मिश्रा ने कमाल किया है और उनका किरदार दिल को छूता है. रिचा चड्ढा तो बखूबी इस किरदार में उतर जाती हैं और उनकी एक्टिंग कहीं-कहीं हिलाकर रख देती है. विकी कौशल ने अपनी एक्टिंग के जौहर दिखाए हैं और श्वेता त्रिपाठी अपने रोल में जमी हैं. मसान को देखकर हम उम्मीद कर सकते हैं कि बॉलीवुड में अच्छी कहानियां अब भी जिंदा है और उन्हें अच्छे अंदाज में कहने वाले भी हैं. स्तरीय सिनेमा की एक मिसाल और कस्बों और गांवों के शहर बनने की अंगड़ाई की बानगी है मसान. एक बार देखनी तो बनती है.  
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