उप राज्यपाल नजीब जंग के खिलाफ अपना रूख और कड़ा करते हुए दिल्ली सरकार ने गुरुवार को यह आदेश जारी कर दिया कि जो मुद्दे उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं उन पर अब उपराज्यपाल से स्वीकृति नहीं ली जाएगी।
कृषि भूमि के सर्कल रेट तय करने संबंधी अधिसूचना जारी करने के बाद उप राज्यपाल ने इससे संबंधित फाइलें मंगाई थीं क्योंकि सरकार ने इसके लिए उनकी स्वीकृति नहीं ली थी। इसके बाद ही सरकार ने यह बयान जारी कर कहा कि सर्किल रेट तय करना पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए उप राज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
दिल्ली सरकार के इस रूख के बाद राजनिवास से जारी एक बयान में कहा गया है कि वह अधिसूचना के संवैधानिक और कानूनी पहलुओं की जांच कराई जा रही है। अंतिम फैसला संविधान कानून तथा मान्य परम्पराओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
बयान के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी ओ पी पाहवा मामले में कहा है कि जो मुद्दे दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं उन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच वही रिश्ता है जो किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री और वहां के राज्यपाल के बीच है। इसीलिए सरकार ने तय किया है जब अन्य राज्यों में राज्यपाल से सभी मुद्दों पर स्वीकृति नहीं ली जाती तो दिल्ली में भी सरकार के अधीन आने वाले मुद्दों पर उपराज्यपाल से स्वीकृति नहीं ली जानी चाहिए।
सरकार ने उपराज्यपाल के इस रूख से असहमित व्यक्त की कि पहले की तरह सभी मुद्दों पर उनकी स्वीकृति ली जाए। किन्तु उक्त कारणों की वजह से सरकार के लिए यह संभव नहीं है। जो मुद्दे दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते है और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र से बिल्कुल बाहर है उन मुद्दों पर संविधान के अनुरूप और दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों को देखते हुए उपराज्यपाल से स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं है।
उप राज्यपाल द्वारा फाइल मंगाए जाने के संबंध में दिल्ली सरकार ने कहा है कि उपराज्यपाल को कोई भी फाइल अवलोकनार्थ मंगवाने का अधिकार है तथा सर्किल रेट की फाइल उनके पास भेज दी गई है। बयान में कहा गया है कि संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि तीन मुद्दों जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर अन्य सभी मामले दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
इसलिए सर्किल रेट बढ़ाने की अधिसूचना जारी की गई। यह मामला दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए उप राज्यपाल की मंजूरी के लिए फाइल उन्हें नहीं भेजी गई। सरकार ने कहा है कि वर्ष 2011 में भी शीला दीक्षित सरकार के दौरान सर्किल रेट तय करने के मामले पर विवाद उठा था।
उस समय गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने मुख्यमंत्री को चिठ्ठी लिखकर सूचित किया था कि दिल्ली में सर्किल रेट तय करना चुनी हुई सरकार के अधीन आता है। तत्कालीन महाधिवक्ता जी ई वाहनवती और केन्द्रीय गृह और कानून मंत्रालय ने भी इसी प्रकार की राय दी थी।
बयान के अनुसार अब तक यह प्रचलन था कि दिल्ली में सभी मुद्दों पर उपराज्यपाल से स्वीकृति ली जाती थी इससे एक तरफ हर निर्णय में देरी होती थी तो वहीं दूसरी तरफ नई सरकार के आने के बाद से उपराज्यपाल हर फाइल में कुछ न कुछ अड़चन लगाकर भेज देते थे। चाहे वह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में हो या न हो। इससे सरकार के हर काम में अड़चन पैदा होने लगी थी।
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