बरेली. आतंकियों की नमाज-ए-जनाजा में शामिल न होने का फतवा जारी करने वाले ‘दरगाह आला हजरत’ मुस्लिम संगठन ने अब अपने मदरसा सिलेबस में आतंकवाद के खिलाफ एक चैप्टर जोड़ने का फैसला किया है। ‘इस्लाम और आतंकवाद’ नाम से यह चैप्टर केवल ग्रैजुएशन कोर्स में शामिल किया जा रहा है। संगठन का कहना है कि आतंकी संगठन मुस्लिम यूथ्स को कुरान और हदीस की गलत जानकारी देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं। इससे निपटने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें सही जानकारी दी जाए।
टीचर्स बताएंगे सही क्या है
दरगाह आला हजरत का कहना है कि वह अपने स्टूडेंट्स को कुरान की सही सीख देगा क्योंकि आतंकी संगठन इसका ट्रांसलेशन गलत तरीके से करते हैं जिससे मुस्लिम यूथ्स उनके झांसे में आ जाते हैं। आला हजरत द्वारा चलाए जाने वाले ‘जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम’ मदरसे में रेगुलर वर्कशॉप भी ऑर्गनाइज किए जाएंगे ताकि ग्रेजुएशन (फाजिल डिग्री) के स्टूडेंट्स इस्लाम की सही डेफिनेशन समझ सकें और बाद में अपने जूनियर्स को इस बारे में बता सकें।
क्या कहते हैं टीचर्स
‘जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम मदरसा बरेली’ के सीनियर टीचर्स मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी कहते हैं, “कई टेरेरिस्ट ग्रुप्स जैसे आईएसआईएस, अल कायदा और तालिबान कुरान और हदीस में कही बातों की गलत डिस्क्रिप्शन देते हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस्लाम की तमाम धार्मिक किताबें ओरिजनली अरबी में लिखी गई हैं। आतंकी संगठन मुस्लिम यूथ्स को इन पवित्र किताबों की गलत डिटेल और डिस्क्रिप्शन देते हैं। हम अपने कोर्स में स्टूडेंट्स को किताबों में कही गई बातों की सही सीख देंगे। हम उन्हें बताएंगे कि टेरेरिस्ट ग्रुप्स कैसे अपने फायदे के लिए इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।” इस मदरसे में फिलहाल ग्रेजुएशन कोर्स करने वाले आठ स्टूडेंट्स हैं।
राजा खान थे फाउंडर
जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम के फाउंडर आला हजरत इमाम अहमद राजा खान थे। इसको 1904 में शुरू किया गया था। खान ने ही बरेलवी मूवमेंट शुरू किया था। फिलहाल, यहां 1200 स्टूडेंट्स हैं। दरगाह आला हजरत के चेयरपर्सन हजरत सुभान राजा खान उर्फ सुभानी मियां कहते हैं, “इस्लाम के नाम पर कुछ संगठन आतंकवाद फैला रहे हैं। इससे लोगों के मन में इस्लाम की इमेज खराब हो रही है। हम चाहते हैं कि अपने मदरसों के माध्यम से हम इस्लाम की सही सीख लोगों तक पहुंचा सकें।” बता दें कि इसी साल ईद के मौके पर इस संगठन ने एक फतवा जारी करते हुए कहा था कि आतंकवाद से जुड़े किसी भी शख्स की मौत के बाद उसके नमाज-ए-जनाजा में शामिल नहीं होना चाहिए।
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