सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साध रहे कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी इसी मुद्दे पर घिरते नजर आ रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार 4 साल पहले यूपीए सरकार ने इसके क्रियान्वयन में आने वाली अड़चने बताई थी। ये दिक्कतें कानूनी, प्रशासनिक और वित्तीय स्तर पर बताई गईं थी।
सूत्रों के अनुसार साल 2011 में ओआरओपी मुद्दे पर विचार के लिए बनी भगत सिंह कोश्यारी समिति से तत्कालीन केन्द्र सरकार ने कहा था कि ओआरओपी योजना के क्रियान्वयन को लेकर कई पेचदगी है। इसके 3 कारण बताए गए थे- वित्तीय, प्रशासनिक और कानूनी।
वित्तीय परेशानियों को लेकर कहा गया था कि इससे केन्द्र सरकार पर रक्षा खाते में हर साल 3,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा।रक्षा मंत्रालय ने समिति से कहा था कि 25 साल से ज्यादा समय के सर्विस रिकॉर्ड अब और नहीं उपलब्ध हैं। इस योजना को लेकर सबसे बड़ी प्रशासनिक परेशानी यही है।
इसके अलावा समिति को यह भी बताया गया था कि अस्सी के दशक में वेतन संबंधी रिकॉर्ड मैनुअली ही रखे जाते थे। यूपीए सरकार के कानून मंत्रालय ने यह भी कहा था कि यदि पेंशन और भत्तों की योजना आज पारित भी कर दी जाती है तो 30 साल पहले रिटायर्ड हुए सैनिकों के साथ सेवाशर्तों को लेकर भेदभाव उत्पन्न होगा।
इसके अलावा सशस्त्र बल के जो लोग रिटायर्ड होने के बाद केन्द्र अथवा राज्य सरकार या अन्य कहीं दूसरी नौकरी कर रहे हैं, उनकी पेंशन का मुद्दा भी अन्य असैन्य कर्मचारी उठा सकते हैं, क्योंकि सरकार पेंशन पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर रही है।
इस मुद्दे पर जब दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार ने वर्तमान के भाजपा सांसद कोश्यारी से योजना के क्रियान्वयन को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इस मुद्दे पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
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