नई दिल्ली।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. एम एम अंसारी ने आरोप लगाया है कि निजी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने से देश में शिक्षा की गुणवत्ता खराब हो रही है और शिक्षा कारोबार बनती जा रही है।
यूजीसी निजी विश्वविद्यालयों के मामले में अपने ही नियमों का पालन नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में निजी विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़कर 200 से भी अधिक हो गई है जबकि पहले एक भी निजी विश्वविद्यालय नहीं होते थे। ये सभी नैक के मानदंड पर खरे नहीं हैं।
अंसारी ने कहा कि यूजीसी के नियमों के अनुसार पांच साल में एक बार डीड विश्वविद्यालयों की समीक्षा किया जाना अनिवार्य है लेकिन 2009 के बाद से इन विश्वविद्यालयों की एक बार भी समीक्षा नहीं की गई। इस समय देश में 129 डी ड विश्वविद्यालय हैं।
टंडन समिति की रिपोर्ट के बाद इनमें से 44 डी ड विश्वविद्यालयों का भविष्य आज तक अधर में लटका हुआ है। यूजीसी ने अभी तक उनके बारे में कोई निर्णय नहीं लिया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी इन 44 विश्वविद्यालयों की समीक्षा कराने की आज तक अनुमति नहीं दी है।
उन्होंने कहा कि टाटा सोशल साइंस जैसे कुछ डी ड विश्वविद्यालयों को यूजीसी पूरी तरह फंड करती है तो नियूपा को जैसे डी ड विवि को मानव संसाधन विकास मंत्रालय फंड देता है तो जामिया हमदर्द जैसे डी ड विवि को एकमुश्त फंड दया जाता है। 129 में करीब 80 निजी डी ड विश्वविद्यालय हैं।
डॉ. अंसारी ने कहा कि देशभर में करीब 700 विश्वविद्यालय हैं, इनमें केवल 15 प्रतिशत ही नैक द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसी तरह देश में करीब 40 हजार कालेज हैं और उनमें से एक तिहाई ही नैक द्वारा मान्यता प्राप्त है।
इस तरह अधिकतर विश्वविद्यालयों तथा कालेज की गुणवत्ता अत्यंत खराब है। नैक की स्थापना भी 20 साल पहले हुई थी। नैक के अध्यक्ष पद तथा निदेशक पद भी काफी दिनों से खाली है। अभी तक केवल 17 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को ही नैक की मान्यता मिली है।
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