बी-टाउन के नवादित निर्देशक प्रकाश नांबियार ने पहली बार में ही बेहतर प्रयास की भरपूर कोशिश की है। इस अलावा उन्होंने ऑडियंस के लिए फिल्म में अपने निर्देशन काफी कुछ परोसा है। इसके अलावा उनका यह पहला प्रयास काफी सराहनीय रहा।
कहानी:
कहानी एक हकीकत और कुछ हद तक लोगों के दिल को छू लेने वाली से शुरू होती है, लेकिन वह सिर्फ एक मूवी...। फिर प्रवीण (शिषिर शर्मा) के घर से कहानी शुरू होती है, जिनके बेटे जय (टीशेय) होता है। वह 35 साल का हो गया है और अपनी परफेक्ट गर्ल ढूंढऩे के चक्कर में अभी तक शादी नहीं की। जय बहुत ही अजीब-ओ-गरीब तरह से रहता है, यानी बगैर शेविंग के, लंबे-लंबे बाल आदि।
फिर स्टोरी टर्न होती है, 14 साल पहले की... और जय एक दिन घूमने के लिहाज से गोवा पहुंचता है, जो अपनी दादी के साथ बैंगलोरु में रह रहा होता है।
बता दें कि जय के माता-पिता दुबई में रहते हैं। फिर जय गोवा पहुंचता है, तो उसकी मुलाकात एक अंजान सी लड़की से होती है, जो आगे चलकर उसकी अंजाने में प्रेमिका भी बन जाती है।
बता दें कि वह भी लंदन की रहने वाली है और वह मुंबई घूमने आए अपने पापा के साथ, वहीं से गोवा घूमने जाती है।
अब जय का आमना-सामना अपनी हम सफर से होता है, जबकि दोनों की सोच बिल्कुल मिलती-जुलती है, लेकिन उसकी प्रेमिका अपने घर वालों की सोच पर ही कायम रहती है और उनके अनुसार ही घर बसाना चाहती है। यहीं से कहानी टर्न लेती है और धीरे-धारी आगे बढ़ती है।
अभिनय:
तारा और टीशेय को निर्देशन के लिहाज से खुद को बहुत ही बेहतरीन ढंग से पेश किया गया, लेकिन कहीं-कहीं पर सभी नाकामयाब से भी नजर आए। इसके अलावा फिल्म में सभी लोगों ने मिलकर काम किया है, जो ऑडियंश को दिखाई भी देता है। इसके अलावा जहां शिषिर शर्मा, राजू खेर, सोनाली सचदेवा समेत स्मिता हाय और विक्रम सिंह चौहान ने अपने-अपने अभिनय में अपना शत-प्रतिशत देने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी।
निर्देशन:
प्रकाश नांबियार ने अपनी पहली ही फिल्म में निर्देशन की कमान बखूबी संभाली है। उन्होंने अपने लिहाज से समाज को एक आइना दिखाने की पूरी कोशिश भी की है। लेकिन उन्होंने अपने लिहाज से फिल्म में मसाला इस कदर दिया कि दर्शकों को कहीं-कहीं पर समझ भी नहीं आया। यानी वे निर्देशन के लिहाज से कुछ हद तक असफल से रहे।
खैर, फिल्म में कुछ अलग कर दिखाने का भरसक प्रयास किया है, इसीलिए वे ऑडियंस की वाहवाही बटोरने में थोड़ा सा सफल भी रहे। बहरहाल, 'अंदर पहन लो तो कोई देख भी नहीं पाएगा...' जैसे कुछ एक डायलॉग्स तारीफ लायक रहे, लेकिन इसकी सिनेमेटोग्राफी कुछ खास नहीं कर सकी।
इसके अलावा फिल्म की कोरियोग्राफी कुछ हद तक तारीफ के लायक भी रही। संगीत (सिद्धार्थ महादेवन और सोउमिल शंृगारपुरे) तो ऑडियंस के ऊपर से जाता हुआ नजर आया और साथ ही गाने की तुलना में थोड़े असफल भी रहा।
क्यों देखें:
एक निर्देशक की गजब सोच को एंटरटेंन के लिहाज से देखा जा सकता है... आगे खुद समझदार हैं आप...!
बैनर: क्रिएटिव आशियन एंटरटेंमेंट प्रा. लि.
निर्माता: उदित शिवराज पाठक
निर्देशक/लेखक: प्रकाश नांबियार
जोनर: रोमांटिक/ ड्रामा
गीतकार: मनोज यादव
संगीत: सिद्धार्थ महादेवन और सोउमिल शंृगारपुरे
स्टारकास्ट: तारा अलीशा बेरी, टीशेय, शिषिर शर्मा, राजू खेर, सोनाली सचदेव, स्मिता हाय, विक्रम सिंह चौहान
रेटिंग: * स्टार
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