दुराचार मामले में गिरफ्तार हुए आसाराम पर पुलिस ऐसी सख्त हुई कि कानूनी उपाय से उसका जेल से बाहर निकलना ही बंद कर दिया। कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए पुलिस ने अदालत में अर्जी पेश कर उसकी सुनवाई जेल के अन्दर ही शुरू करवा दी।
ऐसी ही सख्ती आनंदपाल के मामले में की जानी थी लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। फरारी के 15 दिन पहले ही डीजी जेल ने आनंदपाल के लम्बित अदालती मामले अजमेर कोर्ट में स्थानांतरण कराने का सुझाव दिया था। आनंदपाल फरार हो गया और सुझाव पर पुलिस मुख्यालय से गृह विभाग तक अभी चर्चा चल रही है।
आसाराम के पेशी के दौरान किसी हमले या फरारी का डर नहीं था। परेशानी थी तो बस उसके भक्तों की भीड़ को काबू करने की। इसके विपरीत आनंदपाल की पेशी के दौरान गैंगवार के साथ आनंदपाल के फरार होने की आशंका लगातार जताई जा रही थी। कई अलर्ट भी जारी हुए।
सुझाव के बाद भी आनंदपाल को राहत
आनंदपाल के खिलाफ लम्बित मामलों में से एक डीडवाना में तथा दूसरा चूरू के सुजानगढ़ में चल रहा था। कुछ सप्ताह पहले सुजानगढ़ कोर्ट ने डीजी जेल को पत्र लिखा, जिसमें कहा कि मामले की सुनवाई प्रतिदिन करनी है।
अजमेर से बंदी को लाने में समय लगता है। सुनवाई बाधित नहीं हो इसके लिए आनंदपाल को अजमेर के बजाय किसी नजदीकी जेल में रखा जाए। डीजी जेल ने सुझाव दिया कि सुरक्षा कारणों से आनंदपाल को दूसरी जेल में भेजना सही नहीं होगा। सुरक्षा के साथ मामले की त्वरित सुनवाई के लिए सुजानगढ़ व डीडवाना के मामले अजमेर की कोर्ट में स्थानांतरित करवाए जा सकते हैं।
कागजों तक सीमित रही कवायद
जेल में कोर्ट खोलने का मुद्दा हो या वीडियो कांफ्रेंस से सुनवाई। सभी मामलों पर पहले कागज खूब लिखे, लेकिन मामले फाइलों से बाहर नहीं आए। जेल में कोर्ट का मुद्दा नया नहीं है। अजमेर जेल में कोर्ट तो वर्षों से संचालित है। सेंट्रल जेल परिसर में स्थित कोर्ट टाडा मामलों की सुनवाई के लिए शुरू की गई थी।
यहां आज भी सुनवाई हो रही है। जेल प्रशासन ने इसकी तर्ज पर अन्य जगह भी सुनवाई करने के लिए दिसम्बर 2014 में ही पत्र लिखा था। वीडियो कांफ्रेंस जयपुर व जोधपुर में वर्ष 2006 से चालू है। हालांकि इसका उपयोग न्यायिक हिरासत की अवधि बढ़ाने से ज्यादा नहीं किया जा रहा।
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