फिल्म का नाम: बंगिस्तान
डायरेक्टर: करन अंशुमन
स्टार कास्ट: रितेश देशमुख, पुलकित सम्राट , जैकलीन फर्नाडिस, चन्दन रॉय सन्याल
अवधि: 135 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार
आपको पता है 'जॉली एलएलबी' के डायरेक्टर सुभाष कपूर पहले एक पत्रकार थे. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'मिस टनकपुर हाजिर हो' के डायरेक्टर विनोद कापड़ी भी मशहूर पत्रकारों में से एक हैं, और अब उसी क्रम में पत्रकारिता के बाद डायरेक्शन के क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए तैयार हैं करन अंशुमन अपनी पहली फिल्म 'बंगिस्तान' के साथ.
कहानी
यह कहानी है एक काल्पनिक देश 'बंगिस्तान' की, जिसके उत्तरी भाग के निवासी हाफिज बिन अली (रितेश देशमुख) और दक्षिणी भाग के रहने वाले प्रवीण चतुर्वेदी (पुलकित सम्राट) हैं. दोनों ही अपने अपने धर्म में बहुत यकीन रखते हैं. इन दोनों के धर्मगुरु इन्हें अपने-अपने धर्म की शिक्षा देते हैं, और धर्म के नाम पर पोलैंड जाकर बड़ी लड़ाई लड़ने को कहते हैं. इस कारण हाफिज अब ईश्वरचंद शर्मा (रितेश देशमुख) यानी एक हिन्दू के रूप में और वहीं प्रवीण चतुर्वेदी भी अपना भेष बदलकर मुस्लिम अल्लाह रक्खा खान (पुलकित सम्राट) के रूप में पोलैंड जाता है, दोनों का एक ही मकसद होता है, अपने अपने धर्म के लिए बड़ी लड़ाई लड़ना और प्राण न्योछावर कर देना. कई सारी घटनाएं होती रहती हैं और अंततः इस फिल्म से एक सबक मिलता है.
स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी एक प्रयोग है जिसे शायद कुछ लोग जज्ब कर लें. फिल्म के फर्स्ट हाफ में कई हंसी के पल आते हैं. जब आप इस नए देश में भारत जैसी चीजों के नाम सुनते हैं लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ने लगती है फिर उबासी आने लगती है. फिल्म का क्लाइमैक्स काफी कमजोर है जो क्रिएटिविटी के आधार पर और बेहतर हो सकता था. जिस तरह से 'पीके' फिल्म में धर्मज्ञान एक एलियन के द्वारा बयान किया गया था. वहीं इस फिल्म में एक काल्पनिक देश 'बंगीस्तान' के रहने वाले दो लोगों का माध्यम से धार्मिक संदेश परोसने का प्रयास किया गया है.
अभिनय
एक्टिंग की बात करें तो रितेश देशमुख ने बेहतरीन एक्टिंग की है, लेकिन कहते हैं कि अगर आपका को-एक्टर अगर करेक्ट रिस्पांस न दे, तो आपके काम पर भी असर पड़ता है. पुलकित सम्राट की एक्टिंग के दौरान आपको सलमान खान की कॉपी दिखाई देती है. पुलकित अपने किरदार को और भी बेहतर करते तो शायद यह फिल्म बेहतर कर पाती. जैकलीन फर्नांडिस का काफी छोटा रोल है जो उन्होंने ठीक-ठाक किया है.
संगीत
कहानी की तरह ही फिल्म का संगीत भी क्रिएटिव रखने की कोशिश की गई है लेकिन थोड़े कम गीत रखे जा सकते थे. फिल्म का कांसेप्ट अच्छा है लेकिन पूरी कहानी और भी अच्छे तरीके से दिखाई जा सकती थी. लेकिन पहली फिल्म डायरेक्ट कर रहे करन अंशुमन की कोशिश सराहनीय है. खास तौर से फिल्म में अनोखे नाम जैसे-अल काम तमाम, मां का दल, बी पी ओ ऑफ माऊंटेंस इत्यादि.
क्यों देखें
अगर आप रितेश देशमुख या पुलकित सम्राट के फैन हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं.
क्यों न देखें
इंटरवल से पहले और इंटरवल के बाद भी अगर आप पूरा मनोरंजन चाहते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है.
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