गुजरात में एक सप्ताह तक मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने की राज्य सरकार की कार्रवाई को गुजरात हाईकोर्ट ने उचित बताया हो और इस मुद्दे पर फ्री स्पीच के समर्थक उत्तेजित हो गए हों, पर इस प्रतिबंध ने हर राष्ट्रीय मसलों पर एक-दूसरे को घेरने वाली बड़ी राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को एक साथ ला दिया।
इंटरनेट को बंधन मुक्त करने की वकालत करने वालों का कहना है कि इस निर्णय का देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, तो दूसरी ओर दोनों राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का कहना है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध असहनीय तो है ही, पर साथ ही गुजरात जैसे राज्य में कानून-व्यवस्था के खतरे को रोकने के लिए इंटरनेट पर अस्थाई प्रतिबंध एक अच्छा प्रयास हो सकता है।
पूर्व दूर संचार राज्यमंत्री मिलिन्द देवड़ा इंटरनेट पर प्रतिबंध मसले पर कहते हैं कि एक आदर्श संसार में इटंरनेट पर कफ्र्यू जैसा प्रतिबंध नहीं होना चाहिए लेकिन सिविल सोसाइटी और सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे समझें कि शक्तियां तानाशाही तरीके से निहित न हो जाएं।
इस तरह के नेटवर्क पर अस्थाई रोक का सुझाव देना अनुचित नहीं होगा। भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने भी लगभग यही बात कही। उनका कहना था कि वह अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी तरह के प्रतिबंध के पक्ष में नहीं हैं, पर जहां तक कानून-व्यवस्था को लेकर प्रशासनिक मसला है तो यह विशेष परिस्थितियों में ठीक हो सकता है।
राज्यसभा सदस्य राजीव चंद्रशेखर का तर्क है कि यदि कानून-व्यवस्था को खतरा है तो सरकार ऐसे आदेश दे सकती है। यूनाइटेड किंगडम में लंदन दंगों के दौरान तथा विश्व के कई देशों में इसका परीक्षण किया जा चुका है।
उल्लेखनीय है कि गत 15 सितम्बर को गुजरात हाईकोर्ट के प्रभारी न्यायाधीश जयंत पटेल व न्यायाधीश एन वी अंजारिया की खंडपीठ ने मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज कर दी थी। राज्य सरकार ने दलील दी थी कि पाटीदार आंदोलन में हिंसा को लेकर अफवाह पर लगाम लगाने के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था।
यह था मामला
25 अगस्त को अहमदाबाद में पाटीदार रैली के बाद हादिज़्क पटेल को हिरासत में लिए जाने के बाद राज्यभर में हिंसा भड़क उठी। अहमदाबाद पुलिस आयुक्त की ओर से उसी रात नौ बजे मोबाइल आधारित इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाए जाने की अधिसूचना जारी की गई।
फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्स एप को बंद कर दिया गया। 26 अगस्त से यूट्यूब, व्हाट्स एप व अन्य वेबसाइट से इस आंदोलन से जुड़े उकसाने वाले संदेशों व फोटो को हटा दिया गया। हालांकि ब्रॉडबैंड आधारित सेवा बरकरार रखी गई थी।
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