काबुल। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के दूतावास एरिया में मंगलवार को हुए जबरदस्त फिदायीन धमाके में सात लोग मारे गए और 17 घायल हुए हैं। आत्मघाती हमलावर ने काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट और अमेरिकी दूतावास के रास्ते पर नाटो सैनिकों के काफिले को निशाना बनाया। जहां धमाका हुआ वहां से सुप्रीम कोर्ट भी महज 200 मीटर दूर है। हमले की जिम्मेदारी तालिबान ने ली है।
धमाके से दूतावास एरिया को काफी नुकसान पहुंचा है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, धमाका इतना जबरदस्त था कि दूतावास एरिया की इमारतों के कांच टूट गए।
एक ही दिन में दो हमले
दक्षिणी अफगानिस्तान में मंगलवार सुबह हुए एक आत्मघाती ट्रक बम हमले में दो लोगों की मौत और 40 से ज्यादा घायल हुए थे। एक अधिकारी ने बताया कि यह हमला हेलमंद प्रान्त के लश्करगह के पुलिस मुख्यालय पर किया गया था। तालिबानी विस्फोटकों से लदे ट्रक को पुलिस हेडक्वार्टर के फाटक पर लाए और रिमोट कंट्रोल से उसमें धमाका कर दिया।
8 दिन में दूसरा बड़ा हमला
काबुल में आठ दिन में दूसरा बड़ा हमला हुआ है। पिछले सप्ताह सोमवार को अफगानिस्तान की संसद पर फिदायीन हमला हुआ था। इसमें दो लोगों की मौत हुई थी और 7 आतंकी मारे गए थे।
काबुल में हर दिन नाकाम होते हैं 10 हमले
अफगानिस्तान में मौजूद नाटो के जनरल जॉन कैंबेल के मुताबिक, "सिर्फ मई में काबुल एयरपोर्ट सहित राजधानी के अंदर 6 बड़े हमले हुए। इनमें 19 नागरिकों सहित 100 लोगों की मौत हो गई। काबुल में हालात ऐसे हो गए हैं कि हर दिन 10 आतंकी हमले नाकाम किए जा रहे हैं। इसके बावजूद पिछले 6 महीने में सिर्फ काबुल में 1000 से ज्यादा मौतें हुई हैं। आतंकी अब हाई प्रोफाइल हमलों को अंजाम दे रहे हैं।" यूनाइटेड नेशंस असिस्टेंस मिशन इन अफगानिस्तान के मुताबिक, पिछले साल इसी अवधि में काबुल 300 मौतें हुई थीं। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पूरे देश में आतंकी हमलों के कारण सुरक्षा बलों के जवानों की मौतों के आंकड़े में 75 फीसदी का इजाफा हुआ है। 2014 में 4634 अफगान जवान आतंकी हमलों में शहीद हुए थे।
पूर्व राजनयिक जी. पार्थसारथी dainikbhaskar.com को बता रहे हैं अफगानिस्तान में बढ़ते हमलों के मायने-
1. बार-बार हो रहे हमलों का सीधा कारण क्या हो सकता है?
- जी. पार्थसारथी के मुताबिक, अफगाानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी की नीतियां गलत साबित हो रही हैं। हाल ही के महीनों में अशरफ गनी सरकार ने पाकिस्तानी सरकार से नजदीकियां बढ़ाई हैं। दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए हैं। अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी के प्रमुख के विरोध के बावजूद देश ने आईएसआई से समझौते किए। पाकिस्तान के कहने पर अफगानिस्तान में छिपे पाकिस्तानी आंतकवादियों के खिलाफ कार्रवाई हुई। इसी के जवाब में तालिबान वहां हमले कर रहा है। इससे पाकिस्तान से सहयाेग बढ़ाने की उम्मीदें रखने वाले अफगानिस्तान का अपना नुकसान हो रहा है।
2. पाकिस्तान से नजदीकी का अफगानिस्तान पर कितना असर होगा?
विदेश और सुरक्षा मामलों के जानकार पार्थसारथी के मुताबिक, अफगान की जनता अशरफ गनी से पूछ रही है कि हम पाकिस्तान के लिए अपने सुरक्षा बलों की जान जोखिम में क्यों डाल रहे हैं? लेकिन गनी सरकार को इस पर भरोसा है कि पाकिस्तान की मदद से तालिबान से निपटा जा सकता है। वे यह भूल रहे हैं कि पाकिस्तान की नीयत कभी ठीक नहीं रही। अमेरिका और नाटो की सेना के लौट जाने से अफगानिस्तान की परेशानी और बढ़ेगी। अफगानिस्तान को पाकिस्तान की बजाय भारत जैसे मित्र देशों के साथ मिलकर सुरक्षा नीतियां बनानी होंगी।
3. काबुल में हमले का भारत का कितना असर होगा?
- जी. पार्थसारथी कहते हैं- अफगानिस्तान में भारत के हजारों नागरिक मौजूद हैं। भारतीय उच्चायोग और हमारे दूसरे काउंसलेट की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ेंगी। काबुल में पहले भी भारतीय उच्चायोग पर हमले हो चुके हैं। अफगानिस्तानी संसद सहित वहां के कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर भारत सरकार के जरिए काम हो रहा है। इस तरह के हमलों से भारत का नुकसान हो सकता है। अगर अफगानिस्तान में तालिबान की पकड़ मजबूत होती है तो भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरा बढ़ेगा।
अफगानिस्तान में भारतीय कितने महफूज?
- काबुल में इसी साल 13 मई को कोलोला पुश्ता इलाके स्थित गेस्ट हाउस पार्क पैलेस पर आतंकी हमला हुआ था। इसमें 4 भारतीयों सहित 14 लोगों की मौत हुई थी। यहां अफगानिस्तान स्थित भारतीय राजदूत अमर सिन्हा जाने वाले थे। इसलिए गेस्ट हाउस को टारगेट बनाया गया था।
- फरवरी में हेलमंद प्रांत में तालिबान ने फादर अलेक्सिस प्रेमकुमार एंटनीसामी का अपहरण कर लिया था। लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों के अभियान के बाद फादर को मुक्त करा लिया गया।
- 2014 में अफगानिस्तान में भारतीयों के खिलाफ 14 आतंकी वारदात हुई। जबकि 2013 में जलालाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले सहित 3 आतंकी घटनाएं हुई थीं।
काम नहीं आ रही अफगान बलों की ट्रेनिंग
अमेरिका और नाटो देशों ने अफगान बलों को आतंकवाद विरोधी अभियानों की ट्रेनिंग देने के लिए 60 अरब डॉलर खर्च किए हैं। लेकिन अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों के पास अमेरिकी बलों जैसी काबिलियत और आधुनिक हथियार नहीं हैं। ये बल काबुल के अंदर ही हमले नहीं रोक पा रहे हैं। पिछले दिनों काबुल एयरपोर्ट पर हुअा हमला इसका उदाहरण है।
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